हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के शिलाई गांव में हुई एक अनोखी शादी ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा है। यहां दो सगे भाइयों प्रदीप नेगी और कपिल नेगी ने एक ही महिला सुनीता चौहान से सार्वजनिक रूप से विवाह किया है। इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर पॉलिएंड्री (बहुपति प्रथा) को लेकर तीखी बहस छिड़ गई है।
विवाह की खासियत
ट्रांस-गिरी क्षेत्र के इस विवाह में दोनों भाइयों ने पारंपरिक रीति-रिवाजों के साथ कुंहाट गांव की रहने वाली सुनीता चौहान से शादी के बंधन में बंधे। विवाह समारोह में दोनों भाइयों ने एक साथ सात फेरे लिए और सुनीता को अपनी जीवन संगिनी के रूप में स्वीकार किया।
28 वर्षीय प्रदीप नेगी स्थानीय कृषि व्यवसाय से जुड़े हुए हैं, जबकि 25 वर्षीय कपिल नेगी फिलहाल विदेश में नौकरी कर रहे हैं। 24 वर्षीया सुनीता ने अपने इस निर्णय को पूर्णतः स्वैच्छिक बताया है।
दुल्हन ने किया अपने फैसले का बचाव
सुनीता चौहान ने मीडिया से बातचीत में कहा, “यह मेरा अपना निर्णय था। मैंने इस परंपरा को समझा और पूरी जानकारी के साथ इसे अपनाया। मुझ पर किसी भी प्रकार का दबाव नहीं था। मैं खुश हूं और अपने इस फैसले से संतुष्ट हूं।”
प्रदीप नेगी ने बताया, “हमारे यहां यह एक पुरानी परंपरा है। हमने आपसी सहमति से यह निर्णय लिया है। हम तीनों एक-दूसरे का सम्मान करते हैं और खुश हैं।”
सोशल मीडिया पर बंटे मत
जैसे ही इस विवाह की तस्वीरें और वीडियो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वायरल हुए, लोगों की प्रतिक्रियाएं मिली-जुली आने लगीं।
समर्थन में आई आवाजें:
ट्विटर यूजर राजेश शर्मा ने लिखा: “यह हिमाचल की सदियों पुरानी परंपरा है। महाभारत में भी द्रौपदी के पांच पति थे। अगर तीनों की सहमति है तो किसी को क्या दिक्कत?”
फेसबुक पर डॉ. अनिल ठाकुर ने कमेंट किया: “व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पारंपरिक मूल्यों का सम्मान करना चाहिए। जब तक किसी को जबर्दस्ती नहीं की जा रही, तब तक यह उनका निजी मामला है।”
इंस्टाग्राम इन्फ्लुएंसर प्रिया गुप्ता ने स्टोरी में लिखा: “सांस्कृतिक विविधता हमारे देश की खूबसूरती है। हर परंपरा के पीछे कोई न कोई तर्क होता है।”
आलोचना की आवाजें:
ट्विटर पर महिला अधिकार कार्यकर्ता सुनीता वर्मा ने लिखा: “21वीं सदी में यह कैसी परंपरा? महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं और ऐसी प्रथाओं को बढ़ावा देते हैं?”
यूट्यूब पर सामाजिक कार्यकर्ता अमित कुमार ने वीडियो में कहा: “भारतीय कानून में यह मान्य नहीं है। परंपरा के नाम पर गलत चीजों को जायज नहीं ठहराया जा सकता।”
फेसबुक यूजर रीता देवी ने कमेंट किया: “बच्चों का क्या होगा? पितृत्व के सवाल खड़े होंगे। यह व्यावहारिक नहीं लगता।”
संतुलित विचार:
ट्विटर पर समाजशास्त्री प्रो. विकास मेहता ने लिखा: “न तो पुरानी परंपराओं को अंधाधुंध अपनाना चाहिए और न ही उन्हें पूरी तरह खारिज करना चाहिए। जरूरत है संवेदनशील चर्चा की।”
स्थानीय प्रशासन की प्रतिक्रिया
सिरमौर के जिलाधिकारी ने कहा, “यह एक संवेदनशील मामला है। हमने स्थानीय अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे स्थिति पर नज़र रखें। अभी तक कोई शिकायत नहीं आई है।”
पुलिस अधिकारियों ने बताया कि कानून व्यवस्था की कोई समस्या नहीं है और सभी पक्ष शांत हैं।
हिमाचल में बहुपति प्रथा का इतिहास
हिमाचल प्रदेश में बहुपति प्रथा कोई नई परंपरा नहीं है। यह सदियों से हिमालयी क्षेत्रों की संस्कृति का अभिन्न हिस्सा रही है।
पुराणिक काल से जुड़ाव
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, यह परंपरा महाभारत काल से चली आ रही है। द्रौपदी का पांच पांडवों से विवाह इस प्रथा का सबसे प्रसिद्ध उदाहरण माना जाता है। किन्नौर, लाहौल-स्पीति और कुल्लू के पहाड़ी इलाकों के लोग मानते हैं कि उन्हें यह परंपरा पांडवों से विरासत में मिली है।
भौगोलिक वितरण
किन्नौर जिला: यहाँ बहुपति प्रथा सबसे अधिक प्रचलित थी। स्थानीय ‘खाश’ और ‘डोमांग’ समुदाय में यह सामान्य बात थी।
लाहौल-स्पीति: तिब्बती बौद्ध संस्कृति के प्रभाव के कारण यहाँ यह प्रथा व्यापक रूप से अपनाई जाती थी।
सिरमौर का ट्रांस-गिरी क्षेत्र: जहाँ वर्तमान घटना हुई है, यहाँ मुख्यतः भ्रातृ बहुपति प्रथा प्रचलित थी।
चंबा और कुल्लू: ऊंचाई वाले क्षेत्रों में कुछ गांवों में यह परंपरा थी।
ऐतिहासिक कारण
18वीं-19वीं सदी: अंग्रेजी शासन के दस्तावेजों में इस प्रथा का उल्लेख मिलता है।
कठिन जीवन परिस्थितियां: पहाड़ी इलाकों में कृषि योग्य भूमि की कमी, कठोर मौसम और सीमित संसाधनों के कारण यह प्रथा विकसित हुई।
भूमि संरक्षण: पारिवारिक संपत्ति के विभाजन को रोकने के लिए यह एक प्राकृतिक समाधान था।
ब्रिटिश काल में स्थिति
अंग्रेज अधिकारियों ने अपनी रिपोर्टों में इस प्रथा को ‘असामान्य’ बताया था, लेकिन स्थानीय परंपराओं में हस्तक्षेप नहीं किया। 1920-30 के दशक में मिशनरी गतिविधियों के कारण यह प्रथा घटने लगी।
आजादी के बाद बदलाव
1947 के बाद शिक्षा के प्रसार, सड़कों के विकास और बाहरी संपर्क बढ़ने से यह प्रथा धीरे-धीरे कम होने लगी। 1971 में हिमाचल प्रदेश राज्य बनने के बाद आधुनिकीकरण की गति तेज हो गई।
विशेषज्ञों की राय
दिल्ली विश्वविद्यालय के मानवशास्त्र विभाग के प्रो. रमेश चंद्र ने बताया, “हिमालयी क्षेत्रों में यह प्रथा भौगोलिक और आर्थिक कारणों से विकसित हुई थी। आज इसकी प्रासंगिकता पर सवाल उठना स्वाभाविक है।”
हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के इतिहासकार डॉ. योगेश ठाकुर ने कहा, “यह प्रथा केवल विवाह व्यवस्था नहीं थी, बल्कि एक सामाजिक-आर्थिक रणनीति थी जो कठिन परिस्थितियों में जीवित रहने के लिए अपनाई गई थी।”
महिला अधिकार विशेषज्ञ डॉ. मीरा जोशी ने कहा, “सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि महिला की सहमति वास्तविक हो। बाहरी दबाव या आर्थिक मजबूरी न हो।”
कानूनी स्थिति
कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, भारतीय कानून में पॉलिएंड्री को मान्यता नहीं है। हिंदू विवाह अधिनियम 1955 और भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत यह अवैध है। हालांकि, अभी तक कोई औपचारिक शिकायत नहीं आई है।
भविष्य की चुनौतियां
इस मामले में आने वाली प्रमुख चुनौतियां:
- संपत्ति के अधिकारों का मुद्दा
- बच्चों की कानूनी स्थिति
- सामाजिक स्वीकार्यता
- कानूनी मान्यता का अभाव
विवाह की तस्वीरें वायरल
शादी की रस्म के दौरान ली गई तस्वीरों में दोनों भाई दुल्हन के साथ मंडप में बैठे नजर आ रहे हैं। सुनीता ने पारंपरिक हिमाचली पोशाक पहनी है, जबकि दोनों भाई भी स्थानीय वेशभूषा में हैं।
यह घटना भारतीय समाज में परंपरा और आधुनिकता के बीच चल रही बहस को नए आयाम देती है। सोशल मीडिया पर मिली-जुली प्रतिक्रियाएं यह दर्शाती हैं कि समाज अभी भी इस तरह के मुद्दों पर विभाजित है।
जबकि कुछ लोग इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और पारंपरिक मूल्यों का मामला मानते हैं, वहीं दूसरे इसे आधुनिक युग की चुनौतियों के संदर्भ में देख रहे हैं। अंततः यह समय बताएगा कि समाज इस तरह की परंपराओं को कैसे देखता है और स्वीकार करता है।
यह समाचार केवल सूचना के उद्देश्य से है। व्यक्तिगत निर्णयों का सम्मान करते हुए किसी भी तरह की टिप्पणी या निर्णय से बचें।