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2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस: 19 साल बाद सभी 12 आरोपी बरी, हाई कोर्ट ने कहा – “अभियोजन पक्ष सबूत पेश करने में पूरी तरह असफल”

2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस: बॉम्बे हाई कोर्ट ने सोमवार को 2006 के मुंबई ट्रेन बम धमाकों के मामले में एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। कोर्ट ने सभी 12 आरोपियों को बरी कर दिया है और पांच आरोपियों की मौत की सजा को रद्द कर दिया है।

न्यायमूर्तियों का स्पष्ट संदेश

जस्टिस अनिल किलोर और एस.एम. चंदक की विशेष पीठ ने 2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस में स्पष्ट रूप से कहा कि अभियोजन पक्ष अपना मामला साबित करने में “पूरी तरह असफल” रहा है। कोर्ट ने 30 सितंबर 2015 के विशेष MCOCA न्यायालय के फैसले को पूर्णतः खारिज कर दिया।

2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस: अभियोजन पक्ष की कमियां

हाई कोर्ट ने अपने 2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस फैसले में निम्नलिखित मुख्य कमियों को उजागर किया:

विस्फोटक की पहचान नहीं: अभियोजन पक्ष यह साबित करने में असफल रहा कि किस प्रकार का विस्फोटक इस्तेमाल किया गया था।

संदिग्ध कबूलनामे: आरोपियों के कबूलनामे वैधता की कसौटी पर खरे नहीं उतरे। बचाव पक्ष का दावा था कि ये कबूलनामे यातना के तहत लिए गए थे।

पहचान परेड में खामी: उचित अधिकार के अभाव में पहचान परेड को खारिज कर दिया गया।

गवाहों की विश्वसनीयता: मुकदमे के दौरान आरोपियों की पहचान करने वाले गवाहों के बयानों में विश्वसनीयता का अभाव पाया गया।

7/11 हमले की पीड़ा

11 जुलाई 2006 को शाम के व्यस्त समय में मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए इन समकालिक धमाकों में 189 लोगों की जान गई थी और 827 लोग घायल हुए थे। खार रोड से सांताक्रुज, बांद्रा से खार रोड, जोगेश्वरी से माहिम जंक्शन, मीरा रोड से भयंदर, मतुंगा से माहिम जंक्शन, और बोरिवली के बीच सात स्थानों पर बम फटे थे।

2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस: 19 साल की लंबी न्यायिक प्रक्रिया

2015 में विशेष MCOCA न्यायालय ने 12 आरोपियों को दोषी ठहराया था। इसमें पांच को मौत की सजा और सात को आजीवन कारावास की सजा दी गई थी। महाराष्ट्र सरकार ने मौत की सजा की पुष्टि के लिए हाई कोर्ट का रुख किया था, जबकि आरोपियों ने अपील दायर की थी।

आरोपियों की पीड़ा

आरोपियों में से नावेद हुसैन खान ने नागपुर सेंट्रल जेल से वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से कोर्ट से कहा था कि वह “इस मामले में शामिल नहीं था” और “19 साल तक बेवजह परेशानी झेली है।” उन्होंने कहा था कि जब लोगों की जान गई है, तो बेगुनाहों को भी फांसी नहीं दी जा सकती।

दुखद बात यह है कि आरोपियों में से एक कमल अंसारी की 2021 में नागपुर जेल में कोविड-19 के कारण मृत्यु हो गई थी।

2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट केस: वकीलों की प्रतिक्रिया

आरोपियों के वकील युग चौधरी और नित्या रामकृष्णन ने फैसले के बाद कहा, “यह फैसला न्यायपालिका में लोगों का भरोसा बहाल करने में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।”

विशेष लोक अभियोजक राजा ठाकरे ने कहा कि यह फैसला “एक मील का पत्थर और सभी के लिए मार्गदर्शक” होगा।

Disclaimer: यह खबर बॉम्बे हाई कोर्ट के आधिकारिक फैसले और न्यूज रिपोर्ट्स के आधार पर तैयार की गई है। सभी तथ्य न्यायालयीन दस्तावेजों से सत्यापित हैं।


News Ka Store Team

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