हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट ने महिला सरकारी कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है। कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि किसी महिला के दो बच्चे सरकारी नौकरी से पहले हुए हैं और तीसरा बच्चा नौकरी के दौरान होता है, तो उसे मातृत्व अवकाश से वंचित नहीं किया जा सकता।
मुख्य बिंदु क्या हैं?
न्यायमूर्ति संदीप शर्मा ने इस मामले में कहा कि “याचिकाकर्ता के दो बच्चे सेवा में शामिल होने से पहले हुए थे, लेकिन उसने पहली बार मातृत्व अवकाश की मांग की है। ऐसी स्थिति में उसकी मांग उचित है और इसे स्वीकार किया जाना चाहिए।”
केस की पूरी कहानी
- 2019 में याचिकाकर्ता अर्चना शर्मा ने सिविल अस्पताल, पांवटा साहिब में स्टाफ नर्स के रूप में ज्वाइन किया
- सरकारी नौकरी से पहले उसके दो बच्चे पहले से थे
- मार्च 2025 में तीसरा बच्चा हुआ और मैटर्निटी लीव के लिए आवेदन दिया
- प्रशासन ने CCS (Leave) Rules, 1972 के नियम 43(1) का हवाला देकर छुट्टी देने से मना कर दिया
CCS नियम 43(1) क्या कहता है?
केंद्रीय सिविल सेवा (छुट्टी) नियम 1972 का नियम 43(1) स्पष्ट करता है:
“दो से कम जीवित बच्चों वाली महिला सरकारी कर्मचारी को मातृत्व अवकाश दिया जा सकता है, जो 180 दिनों तक हो सकता है।”
कोर्ट का तर्क और फैसला
हाई कोर्ट ने निम्नलिखित बिंदुओं पर जोर दिया:
1. समयसीमा का महत्व
- पहले दो बच्चे सरकारी सेवा से पहले हुए
- तीसरा बच्चा सेवाकाल के दौरान हुआ
- इसलिए यह उसका पहला आवेदन माना जाएगा
2. सुप्रीम कोर्ट का संदर्भ
कोर्ट ने के. उमादेवी बनाम तमिलनाडु सरकार (2025) केस का हवाला देते हुए कहा:
“मातृत्व अवकाश का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कामकाजी महिला मातृत्व की स्थिति को सम्मानजनक, शांतिपूर्वक पार कर सके।”
महिला कर्मचारियों के लिए क्या मायने रखता है यह फैसला?
✅ सकारात्मक प्रभाव:
- न्याय मिला: सेवा पूर्व बच्चों को लेकर भेदभाव समाप्त
- स्पष्टता: नियमों की व्याख्या में पारदर्शिता
- महिला अधिकार: कामकाजी माताओं के अधिकारों की सुरक्षा
📋 प्रैक्टिकल फायदे:
- 180 दिन तक का मातृत्व अवकाश
- पूर्ण वेतन के साथ छुट्टी
- नौकरी की सुरक्षा बनी रहेगी
अन्य राज्यों में क्या प्रभाव होगा?
यह फैसला राष्ट्रीय स्तर पर प्रभावी हो सकता है क्योंकि:
- CCS नियम केंद्र सरकार के सभी कर्मचारियों पर लागू होते हैं
- राज्य सरकारें भी इसी नियम का पालन करती हैं
- न्यायिक मिसाल के रूप में अन्य कोर्ट इसे मान सकते हैं
कानूनी विशेषज्ञों की राय
कानूनी जानकारों का मानना है कि यह फैसला महिला सशक्तिकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह स्पष्ट करता है कि:
- नियमों की मानवीय व्याख्या होनी चाहिए
- टेक्निकैलिटी के नाम पर अधिकारों का हनन नहीं होना चाहिए
- कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहन मिलना चाहिए
आगे की राह
सरकारी कर्मचारियों के लिए सुझाव:
- दस्तावेज अपने पास रखें (बच्चों के जन्म प्रमाण पत्र, ज्वाइनिंग डेट आदि)
- समय पर आवेदन करें
- कानूनी सलाह लें यदि छुट्टी में देरी हो
प्रशासन के लिए दिशा-निर्देश:
- नियमों की उदार व्याख्या करें
- महिला कल्याण को प्राथमिकता दें
- स्पष्ट गाइडलाइन जारी करें
केस की पूरी जानकारी
केस का नाम: अर्चना शर्मा बनाम हिमाचल प्रदेश राज्य एवं अन्य
केस नंबर: CWP No. 10589 of 2025
फैसले की तारीख: 30 जुलाई 2025
न्यायाधीश: न्यायमूर्ति संदीप शर्मा
यह फैसला न केवल हिमाचल प्रदेश बल्कि पूरे देश की महिला सरकारी कर्मचारियों के लिए एक महत्वपूर्ण मिसाल है। यह दिखाता है कि न्यायपालिका महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
अस्वीकरण: यह जानकारी केवल सामान्य जानकारी के उद्देश्य से है। कानूनी सलाह के लिए योग्य वकील से संपर्क करें।