न्यू दिल्ली, 25 जुलाई 2025 – दक्षिण-पूर्व एशिया में एक बार फिर तनाव की स्थिति बन गई है। थाईलैंड और कंबोडिया के बीच गुरुवार को सीमा पर भयंकर झड़पें हुई हैं, जिसमें 12 लोगों की मौत हो गई है और दर्जनों घायल हुए हैं। यह एक दशक में सबसे खूनी संघर्ष है, और इसकी जड़ में हैं 900 साल पुराने हिंदू मंदिर।
संघर्ष की शुरुआत: ता मुएन थॉम मंदिर
गुरुवार तड़के से शुरू हुई यह लड़ाई थाईलैंड के सुरिन प्रांत में स्थित ता मुएन थॉम मंदिर के आसपास हुई है। यह 12वीं सदी में बना भगवान शिव का मंदिर है, जो खमेर साम्राज्य की वास्तुकला का बेहतरीन नमूना है।
युद्ध की घटनाएं
थाई सेना के अनुसार, संघर्ष तब शुरू हुआ जब:
- कंबोडियाई सैनिकों ने थाई सैन्य पोजीशन के पास ड्रोन से निगरानी शुरू की
- थाई सैनिकों द्वारा शांति के प्रयास नाकाम रहे
- सुबह 8:20 बजे तक भारी गोलीबारी शुरू हो गई
- कंबोडियाई सैनिकों के पास RPG हथियार थे
कंबोडिया का आरोप: थाईलैंड ने उनकी संप्रभुता का उल्लंघन किया है।
थाईलैंड का दावा: उन्होंने सिर्फ आत्मरक्षा में कार्रवाई की है।
आपातकालीन स्थिति और निकासी
खतरे का स्तर बढ़ाया गया
थाईलैंड ने खतरे का स्तर “लेवल 4” कर दिया है, जिसके कारण:
- सभी सीमावर्ती चेकपॉइंट्स पूरी तरह बंद
- 86 गांवों से 40,000 थाई नागरिकों की निकासी
- सीमावर्ती इलाकों में व्यापक सुरक्षा व्यवस्था
विवाद की जड़: प्रेह विहार मंदिर का इतिहास
900 साल पुराना धार्मिक स्थल
प्रेह विहार मंदिर कंबोडिया के डांग्रेक पर्वत में 525 मीटर ऊंची चट्टान पर स्थित है। यह खमेर साम्राज्य के दौरान बना भगवान शिव का मंदिर है, जो न केवल कंबोडियाइयों बल्कि थाई लोगों के लिए भी पवित्र स्थल है।
अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय का फैसला (1962)
1962 में अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) ने एक ऐतिहासिक फैसला दिया:
- कंबोडिया के पक्ष में फैसला
- थाईलैंड को सैनिक वापस लेने का आदेश
- 1954 के बाद हटाई गई कलाकृतियां वापस करने का निर्देश
1907 का फ्रांसीसी नक्शा
फैसले का आधार था 1907 में फ्रांसीसियों द्वारा बनाया गया नक्शा, जिसमें:
- मंदिर को कंबोडिया (तत्कालीन फ्रांसीसी संरक्षण) में दिखाया गया
- तत्कालीन सियाम (थाईलैंड) ने इसे स्वीकार किया था
- बाद में थाईलैंड ने इसे “गलतफहमी” बताया
2013 का स्पष्टीकरण
2011 की झड़पों के बाद, ICJ ने 2013 में स्पष्ट किया:
- न केवल मंदिर बल्कि आसपास का पूरा क्षेत्र कंबोडिया का है
- थाईलैंड को अपनी सेना हटाने का सख्त आदेश
ता मुएन थॉम: वर्तमान संघर्ष का केंद्र
अनूठी वास्तुकला
ता मुएन थॉम मंदिर की विशेषताएं:
- दक्षिण दिशा में मुंह: खमेर मंदिरों में यह असामान्य है (आमतौर पर पूर्व दिशा में होते हैं)
- प्राकृतिक शिवलिंग: गर्भगृह में प्राकृतिक रूप से बना शिवलिंग
- तीन मुख्य मंदिर: ता मुएन थॉम, ता मुएन और ता मुएन टॉट
फरवरी की घटना
फरवरी में कंबोडियाई सैनिकों ने मंदिर में राष्ट्रगान गाया था, जिससे थाई सैनिकों के साथ तनाव हुआ। इसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था।
औपनिवेशिक इतिहास और राजनीति
फ्रांसीसी संरक्षण (1863-1907)
1863 में कंबोडिया पर फ्रांसीसी संरक्षण स्थापित होने के बाद:
- 1904-1907 के बीच कई संधियां हुईं
- फ्रांसीसी सर्वेक्षणकर्ताओं ने वाटरशेड लाइन के आधार पर नक्शे बनाए
- सांस्कृतिक महत्व वाले स्थानों पर अपवाद किए गए
यूरोपीय कार्टोग्राफी का प्रभाव
दक्षिण-पूर्व एशियाई इतिहासकारों के अनुसार:
- पश्चिमी शक्तियों द्वारा खींची गई सीमाएं क्षेत्रीय राजनीति के लिए अजनबी थीं
- फ्रांसीसी नक्शों ने कंबोडिया को एक अलग “भू-शरीर” दिया
- आधुनिक तकनीक ने इन नक्शों में असंगतियां उजागर कीं
UNESCO विश्व धरोहर विवाद (2008)
कंबोडिया की सफलता
2008 में कंबोडिया ने प्रेह विहार को UNESCO विश्व धरोहर स्थल बनवाने में सफलता पाई, जिससे:
- थाईलैंड में तीव्र विरोध
- तत्कालीन विदेश मंत्री नोप्पाडॉन पत्तामा को इस्तीफा देना पड़ा
- उसी साल मंदिर के पास झड़पें हुईं
वर्तमान स्थिति और भविष्य की चुनौतियां
राजनयिक समाधान की जरूरत
इस संघर्ष के समाधान के लिए आवश्यक है:
- द्विपक्षीय वार्ता को बढ़ावा देना
- ICJ के फैसलों का सम्मान और पालन
- क्षेत्रीय शांति के लिए ASEAN की भूमिका
आर्थिक नुकसान
सीमा बंद होने से:
- व्यापारिक गतिविधियां ठप
- पर्यटन उद्योग पर नकारात्मक प्रभाव
- स्थानीय लोगों की आजीविका प्रभावित
धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व
हिंदू धर्म का प्रभाव
ये मंदिर दर्शाते हैं:
- दक्षिण-पूर्व एशिया में हिंदू सभ्यता का विस्तार
- खमेर साम्राज्य की धार्मिक सहिष्णुता
- शिव भक्ति की गहरी परंपरा
सांस्कृतिक एकता की संभावना
इन मंदिरों की साझी विरासत:
- दोनों देशों के लिए समान धार्मिक महत्व
- सांस्कृतिक सहयोग की संभावनाएं
- क्षेत्रीय एकता के लिए आधार
शांति की दिशा में कदम
थाईलैंड-कंबोडिया सीमा विवाद एक जटिल मुद्दा है जिसकी जड़ें औपनिवेशिक इतिहास, धार्मिक भावनाओं और राष्ट्रीय गौरव में हैं। हिंदू मंदिरों का यह विवाद दिखाता है कि कैसे धर्म और राजनीति के मिश्रण से तनाव पैदा हो सकता है।
समाधान के लिए आवश्यक है कि दोनों देश:
- अंतर्राष्ट्रीय कानून का सम्मान करें
- धार्मिक स्थलों को राजनीतिक हथियार न बनाएं
- साझी सांस्कृतिक विरासत को एकता का आधार बनाएं
केवल शांतिपूर्ण बातचीत और पारस्परिक सम्मान से ही इस सदियों पुराने विवाद का स्थायी समाधान हो सकता है। ये प्राचीन मंदिर, जो कभी शांति और आध्यात्म के केंद्र थे, फिर से उसी भूमिका में आ सकें – यही दोनों देशों की जनता की कामना है।
नोट: यह रिपोर्ट 25 जुलाई 2025 तक उपलब्ध जानकारी पर आधारित है। स्थिति तेजी से बदल रही है, नवीनतम अपडेट के लिए आधिकारिक स्रोतों पर नजर रखें।